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आंखों की कही-सुनी / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
तुम्हारी बातों में आवाज़ कहाँ होती है?
आँखों से कहा करती हो
आँखों से .. सुना करती हो !
लफ्ज़ इकाधा मिलते हैं.. पर
मायने खोजने में राह भटक जाते हैं !
इक झपकी से कुछ कहती हो,
इक झपकी में सब समझ लेती हो !
पुतलियों के बीच के लाल रेशों में
मन कसा करती हो !
मेरी तस्वीर अपनी निगाहों से खींच
जाने किस दीवार पे लगा रखती हो ?
सोचता हूँ कभी-कभी के इन
नशीली बातों को रिकार्ड करके रख लूँ कहीं,
तन्हाई में सुना करूं.. मगर
उफ़! जैसे ही ये बात समझ लेती हो..
आँखों पे भी चुप के ताले लगा लेती हो !
लबों से कुछ न कहती हो पर नज़र से
बातें बहुत किया करती हो !