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आंखों भाये आखर / हरीश बी० शर्मा

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मैं आज तक नहीं जान पाया
पहले प्यार का पवित्र आधार
वासना और हवस सू दूर
कथित मनप्रीत
देह के अक्षरों को पढ़ते
प्रेम की मीठी-मीठी बातें करते
सदियां निभाते आए
प्यार के लिए जीते-मरते आए
सच था केवल उतना बस
नितांत जंगली
समझौता
आनंद के आदान-प्रदान का
नाम दिया मन
बंधे रहे सात जन्म
निभाते रहे सात वचन
नहीं माना
खींचकर लाए थे
पहली बार
आंखो-भाये आखर।