भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आई गेन ऋतु बौड़ी दॉई जनो फेरो / गढ़वाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आई गेन ऋतु बौड़ी<ref>लौटना</ref> दॉई जनो फेरो<ref>फसल मोड़ते समय बैलों के चक्कर</ref>, झुमैलो
ऊबा<ref>ऊपर</ref> देसी ऊबा जाला, ऊँदा<ref>नीचे</ref> देसी ऊँदा, झुमैलो
लम्बी-लम्बी पुंगड् यों<ref>खेत</ref> मां, रअ् रअ् शब्द होलो, झुमैलो
गेहूँ की जौ की सारी, पिंगली<ref>पीली</ref> होई गैने, झुमैलो
गाला गीत बसन्ती, गौं का छोरा<ref>लड़का</ref> छोरी, झुमैलो
डाँडी काँठी गुँजी ग्येन, ग्वैरू<ref>चरवाहा</ref> को गितूना, झुमैलो
छोटी नौनी-नौनी, मिलि देल्यू<ref>देहली</ref> फूल चढ़ाला झुमैलो:
जौं का माई रला, देला टालुकी<ref>चुनरिया</ref> अंगूड़ी<ref>अगर</ref>, झुमैलो
मैतु<ref>मायके</ref> बैण्युं कु अप्णी, बोलौला चेत मैना, झुमैलो।

शब्दार्थ
<references/>