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आईना / रेखा

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द्वार पर खड़े
फकीर से कहना
इंतज़ार करे पल-भर
दीवार पर जड़ी झील में
डाले हैं मैने
स्मृतियों के जाल

बहुत गहरी है
पारे की यह झील
इसमें डूबा है
तमाम शहर
पूरी आबादी
लम्बा इतिहास
पकड़ लेने दो मुझे
रंगीन मछलियों की तरह
तल में फिसलते चेहरे

इसी झील के कगार से
फिसली थी आँख-मिचौनी खेलती
वह नन्हीं सी गुढ़िया
इन्हीं किनारों पर
धूप की महावर से रंगे
थिरके थे
किसी किन्नरी के पाँव
सूरज के अबीर से
गुलाल एक चेहरा
इन्हीं पानियों में
डूबा था कभी
इसी पारदर्शी झीने जल में
चुंधियाई रातों की चिलमन में
डोलती थी एक अलसाई छाया
झील की झालरों को
दूर सरकाती
जवान देह

किसी अचीन्हें क्षण
कुछ सोने लगा था
उसी चँचल-सी देह में
लहू में उतर रही थी नींद
घने शहद की बूँदों-सी
सहसा कूद पड़ा था चाँद
झील के तल में
जा सोया था
काले बालों में
लहराईं थी चाँदी की लहरें

हर बार जो उछले हैं
हड़बड़ में हाथों से चेहरे
यहीं-कहीं डूबे हैं
इसी झील के जल में

यह जो जोगी
दरवाज़े पर से
रह-रह कर फेंक रहा है
कंकड़
कसमसाने लगता है
सोया हुआ झील का जल
छटपटा उठते हैं
तल में डूबे सीप हुए चेहरे

खींच रही हूँ।
पारे की झील से
स्मृतियों का जाल
कहाँ उलझ जाता है
फिर-फिर कोई पिंजर

हटा दो आकर
दीवार से आइना
फकीर की झोली में
डाल दो जाकर यह पिंजर।