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आईने का हर टुकड़ा / रेखा राजवंशी
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आईने का हर टुकड़ा, आंसू बहा रहा है ।
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है ।
बरसा नहीं था बरसों, बादल भरा हुआ था
बेबाक बारिशों में अपनी नहा रहा है ।
तरसे जो चांदनी को, वो लोग भी अजब हैं
अब चाँद मिल गया तो, उनको जला रहा है ।
ताबूत में दबाकर, रख दी थी जो तमन्ना
किसका ख्याल उसमें हलचल मचा रहा रहा है ।
उसने की आशनाई, उसने की बेवफाई
फिर क्यों मुझे ज़माना कातिल बता रहा है ।