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आए लौटि लज्जित नवाए नैन ऊधौ अब / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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आए लौटि लज्जित नवाए नैन ऊधौ अब
सब सुख-साधन कौ सूधौ सौ जतन लै ।
कहै रतनाकर गँवाए गुन गौरव औ
गरब-गढ़ी कौ परिपूरन पतन लै ॥
छाए नैन नीर पीर-कसक कमाए उर
दीनता अधीनता के भार सौं नतन लै ।
प्रेम-रस रुचिर बिराग-तूमड़ी में पूरि
ज्ञान-गूदड़ी में अनुराग सौ रतन लै ॥105॥