आओ, आत्महत्या करें / अरुण देव
१)
इतिहास में उन्होंने कभी मुझे मारा था
सताया था
जबरन थोपे थे अपने क़ायदे
आज मुझे भी यही सब करना है
आओ हम सब मिलकर लौटते हैं अतीत में ।
२)
अतीत की धूल में मुझे नहीं दीखते चेहरे
मुझे साफ़ साफ़ कुछ सुनाई भी नहीं पड़ता
चलो मेरे साथ नरमेध पर
जो चेहरा सामने दिखे वही है वह ।
३)
मुझे नापसन्द हैं तुम्हारे क़ायदे
सख़्त नफ़रत करता हूँ तुम्हारी नफ़रतों से
मैं तुम्हारी तरह बन गया हूँ धीरे-धीरे ।
४)
दरअसल मैं तुम्हें सबक़ सिखाना चाहता हूँ
डर
भय
कातरता
देखो ब्लडप्रेशर से कँपकँपाते मेरे ज़िस्म को
मैं सामूहिक ह्रदयघात हूँ ।
५)
यह जो उजली सी आज़ादी हमें मिली
और उस पर जो यह स्याह धब्बा था
अब फैलकर महाद्वीप बन गया है
ज़हर से भरा है इसका जल
६)
तुम्हें ख़ुशहाली नहीं
तुम्हें प्रतिशोध चाहिए ।
७)
जब घृणा का अंकुरण होता है
सूखते हैं पहले रसीले फल
गिर जाती हैं हरी पत्तियाँ
जब घर जलाने को बढ़ाते हो हाथ
तब तक राख हो चुका होता है मन का आँगन
हत्या के लिए जो छुरी तुमने उठाई है
उस पर तुम्हारी मासूमियत का लहू है
तुम फिर कभी वैसे नहीं लौटोगे
तुम्हारे बच्चे
नृशंस हो चुके होंगे ।
८)
आग में जो सबसे कोमल है
पहले वह झुलसता है
जैसे बच्चे
जो सुन्दर हैं जलते हैं फिर
जैसे स्त्रियाँ
घिर जाते है
वृद्ध आसक्त
धुआँ उठता है कविता की किताब से
तुम्हारे अन्दर जो सुलग रहा है
वह फिर पलटकर तुम्हें डसेगा ।
९)
तुम लज्जित करने के कोई भी अवसर नहीं चूकते
तुम हत्या के लिए तलाशते हो बहाने
तुम जीने का सलीका भूल गए हो ।
१०)
यह धरती फिर भी रहेगी
तुम्हारे रोते, बिलखते, कुपोषित बच्चों से आबाद ।