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आओ / नन्दकिशोर नवल

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आओ
शरत् के नीले आकाश से तुम्हारा स्वागत है ।
शरत् की चमकती हुई धूप से तुम्हारा स्वागत है ।

मुझे अपने गाँव के खेत याद आ रहे हैं,
जिनमें धान के पौधे उठ रहे होंगे ।
मुझे अपने गाँव की नहर याद आ रही है,
जिसके जल में चाँद झलमलाता होगा ।
मुझे अपने गाँव के रास्ते याद आ रहे हैं,
जिनके किनारे की दूब ओस से गीली होगी ।

इस सबसे तुम्हारा
स्वागत है,
तुम आओ ।

तुम्हारी आँखें नीला आकाश हैं,
तुम्हारी हँसी छिटकती हुई चाँदनी है
और तुम्हारे उरोज
शरत् के सरोवर में खिले हुए कमल हैं ।