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आओ अतीत जियें / केशव
Kavita Kosh से
आओ
बीते दिन दोहराएं
गाएँ अतीत के गीत
बर्षा-बूँदों की नन्हीं हथेलियों
की तरह नाचते हुए
डूब जाएँ फिर से
उन्हीं उन्हीं पलों में
अंतरंग सखा मान जिनमें
किया था अपनी झीलों में
आत्मसात तुम्हें
जब अक्सर हम-तुम
आसमानी बिजली की तरह
कौंध जाते थे एक दूसरे में
और बादली-आलिंगन में विभोर
छप जाते थे
अपनी पहचान के आकाश में
नक्षत्र-से
आआ
बटोर लें
अतीत के धुंधलाते आकाश से
स्मृतियों के सितारे
जिनमें से हमारे
चुम्बनों की गर्मी
पिघलती नहीं है आज तक भी
आज फिर एक बार
झाँक लें
नयन-कोर
जिनमें मोजूद है सदियों की प्यास
अनखुदे कुएँ पर बैठे
यायावर-सी
बाँट लें
एक दूसरे की सीमाओं पर ठहरे
प्रश्नचिन्ह
आओ
एक बार फिर
मधुमास के स्वागतार्थ
खोलें
दिशाओं के द्वार