आओ अपना धर्म निभायें / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
जागें जागें ऐ वीरो! अब तो हम जागें
आह्वान कर रही भारती आलस त्यागें
भटक गये हैं कहाँ कौन-से मद में फूले?
त्याग और बलिदान पंथ को क्योंकर भूले?
देखो फिर से बिखर न जायें,
आओ अपना धर्म निभायें।
सेवा और समर्पण के सोपान कहाँ हैं?
मानवता संरक्षण के अभियान कहाँ हैं?
तुम प्रकाश के पुंज बने क्यों अंधकार से?
घिरे हुए क्यों सघन-मोह घन दुर्निवार से?
नव जीवन की ज्योति जगाये,
आओ अपना धर्म निभायें।
मानवता के प्रबल शत्रु हुंकार रहे हैं
फिर अजेय बल पौरुष को ललकार रहे हैं
जागें उठें शक्ति को अपनी फिर पहचाने
खडिण्त राष्ट्र अखंडित हो ऐसा प्रण ठाने
मातृभूमि पर बल-बल जायें,
आओं अपना धर्म निभायें
हैं सौगन्ध हिमालय की अनन्त सागर की
ज्ञान,दान,वीरता,त्याग,तप के आगर की
कर तमिस्र संहार ज्योति नव जाग्रत कर दें
माटी के कण कण में नयी चेतना भर दें
जीवन ज्योतिर्मान बनायें
आओं अपना धर्म निभायें
जागें उठें जगायें अपने स्वाभिमान को
गुंजित कर दे वसुन्धरा को आसमान को
अपना जीवन रहे धरा पर या मिट जाये
भारत माँ का भाल कभी मत झुकने पायें
यह संकल्प सभी दुहरायें,
आओं अपना धर्म निभायें।
विश्व शान्ति सद्भाव मनुजता के रखवाले
धरती पर आलोक नया बिखराने वाले
अमर कीर्ति गायेगा जग युग-युग तक पावन
आगे बढ़े राष्ट्रहित अर्पण कर दे जीवन
बलिदानों की गाथा गायें,
आओं अपना धर्म निभायें।