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आओ नहाएँ / रघुवीर सहाय

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आओ नहाएँ
छत से फुहार झरे खड़े रहें आँख मींच
कभी कभी चुपके से देखें धुल रही धूल भरी पिंडलियों की
थके थके एक दूसरे को उघरे देखें
और न शरमाएँ

आओ
कुछ भीगने दो
भीगे केशों में सुगन्धि आ जाने दो
आह, चाहते क्या हैं, कट जाएँ पाप ?

हिश्त् । खड़े रहें, भौहों में ठंड पड़े
कड़े रहें, खड़े रहें
और निखर आएँ ।