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आओ पेड़ लगाएं / नागेश पांडेय 'संजय'
Kavita Kosh से
सारे जग के शुभचिन्तक,
ये पेड़ बहुत उपकारी।
सदा-सदा से वसुधा इनकी
ऋणी और आभारी।
परहित जीने-मरने का
आदर्श हमें सिखलाएँ।
फल देते, ईंधन देते हैं,
देते औषधि न्यारी।
छाया देते, औ‘ देते हैं
सरस हवा सुखकारी।
आक्सीजन का मधुर खजाना
भर-भर हमें लुटाएँ।
गरमी, वर्षा, शीत कड़ी
ये अविकल सहते जाते,
लू, आँधी, तूफान भयंकर
देख नहीं घबड़ाते।
सहनशीलता, साहस की
ये पूज्यनीय प्रतिमाएँ।
पेड़ प्रकृति का गहना हैं,
ये हैं श्रृंगार धरा का।
इन्हें काट, क्यूँ डाल रहे
अपने ही घर में डाका।
गलत राह को अभी त्याग कर
सही राह पर आएँ।