आओ मेरी बच्ची / श्याम सुशील
(ढाई साल की बेटी के लिए)
आओ मेरी बच्ची
दौड़कर आओ/चढ़ जाओ मेरे कंधेपर
घोड़ा बनाकर मुझे
बैठो मेरी पीठ पर।
आओ मेरी बच्ची
रोते हुए आओ मेरे पास
अपने घुटनों और कुहनी पर
लगी हुई चोटों को दिखाओ मुझे
तुम्हारी चोटों पर मरहम रखूंगा मेरी बच्ची
अपनी जीभ से चाटकर भरूंगा तुम्हारें घावों को।
आओ मेरी बच्ची
हंसते हुए आओ मेरे पास-
मेरे तमाम दुखों को रूई का फाहा बनकर
उड़ा दो हवा में
मेरी तमाम चिंताओं को
अपनी निश्छल हंसी के गुब्बारे में भरकर
उड़ा दो आसमां में
आओ मेरी बच्ची
अपने खिलौनों की दुनिया में ले चलो मुझे।
आओ, यही वक्त है दो-चार साल का
जब तुम मुझे बना सकती हो घोड़ा
और बैठ सकती हो मेरे कन्धे पर चिड़िया बनकर
यही वक्त है दो-चार साल का
जब तुम मुझे लौटा सकती हो मेरा बचपन
मेरे आंसुओं का अर्थ बिना जाने पोंछ सकती हो
और मुझे हंसने पर कर सकती हो विवश।
यही उम्र है जब तुम मुझसे चिपटकर रो सकती हो
अपनी तमाम इच्छाओं को पूरा कराने की कर सकती हो जिद
यही उम्र है मेरी बच्ची
तुम्हारे रूठने और जिद करने की...
चार वर्ष बाद
तब तुम बड़ी होने लगोगी लगातार
तब तुम्हारे हंसने और रोने का अर्थ बदलने लगेगा।
तब शायद यह सोचकर कि पापा तुम्हारी इच्छाओं को
कैसे करेंगे पूरा
तुम अपने मन की बात अपने भीतर ही दबाने लगोगी
तब शायद मैं तुम्हें सीने से चिपटाकर
रो भी नहीं पाऊंगा...
आओ मेरी बच्ची
यही वक्त है
अपनी इच्छाओं की पोटली खोल सकती हो
अभी मेरे सामने
बाद की कौन जाने!