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आखड़ी / अर्जुनदेव चारण
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थूं किसा पाप
कद करिया मां
कै सुधारण आपरौ आगोतर
जीवी कळपती
कदेई तौ
मांगियौ होवतौ म्यांनौ
कदेई तौ
पूछियौ होवतौ सवाल
थारी जीभ
कुण चिढाय गियौ
सिन्दूर
मां
ना नीं देवण री
आखड़ी
कुण दिराय गियौ
थनै