भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखर ज्ञान करांवांला / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोळा-ढाळा भायलां नै
आखर ज्ञान करांवांला
पढणो-लिखणो सैं नै सीखांवां
देस रो भाग जगांवंला।

अणपढ़ जण री इण दुनियां में
कदर नहीं किण ठौड़ रे
मिलै जिको ही ठगल्यै-लुटल्यै
मच री रापण रोळ रे

दान आंक रो अणमोल्यो है
इणनै खूब लूटांवांला
देस रो भाग जगांवांला

पढया-लिख्यां री इण दुनियां में
अणपढ री पीछाण नी
भण्या-गुण्या री सभा बीच में
अणपढ़ नैं सम्मान नीं।

बास-गळी रा साथीड़ां नै
आखर दे मुळकांवांला
देस रो भाग जगांवांला।