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आखर बीज / मोनिका गौड़
Kavita Kosh से
छिडक़ूं आठूं पौर
भाव-विचारां रा बीज
चेतना री जमीं माथै
आज नीं तो काल
काल नीं तो परसूं
कदैई तो पांगरसी
म्हारी धुन
पड़तल धरती सूं प्रगटसी
कदैई तो कूंपळ,
खिलसी इण बिरवै
कदैई तो सबदां रा फूल
फूट’र खिंडसी
किणी डोडै
अै अडक़ बीज
अर होयसी
कविता सूं लड़ालूम फळियां...
जे नीं तिडक़ी कूंपळ
जे नीं खिल्या पुसब
अर नीं मुळक्या आं फळियां में दाणा
तो ई अै बीज
माटी में रळ
बण जावैला खाद
अर करसी उजाड़ जमीं री नूंवी पोख
नूंवै भाव-विचारां री बुवाई सारू
छिडक़ूं आखर बीज
भविस री फसल री आंख्यां!