आख़िर कहें तो किससे कहें / निर्मला पुतुल
वे कौन लोग थे सिद्धो-कान्हू
जो अँधेरे में सियार की तरह आए
और उठा ले गए तुम्हारे हाथों से तीर-धनुष
तुम्हारी मूर्ति तोड़ी वे कौन लोग थे,
तुम आज ज़िन्दा होते तो
शायद ही ऐसा दुस्साहस करता कोई ।
सुनी नहीं जिन्होंने तुम्हारी वीरता की गाथा
पढ़ा नहीं तुम्हारा इतिहास
वे तीर और तीर के लक्ष्य नहीं जानते
तभी तो इतिहास के पन्नों से
मिटाना चाहते हैं तुम्हारा नामों निशान ।
वे कितने नादान हैं, बेईमान
कभी लुच्चा-लंपट बता-बता कर
छोटा करते रहे तुम्हारा क़द
और तुम्हारे आंदोलन को
देश की आज़ादी न मानकर
एक झूठी कहानी को बताते रहे सच ।
आदिवासियत के नाम पर
तुम करते रहे सच्ची वीरता की विरासत का बंदरबाँट
देखते रहे तुम्हें हिकारत से वे
उड़ाते रहे मज़ाक तुम्हारी लंगोटी का
सोतार कह अभी भी
तुम्हारे वंशजों को चिढ़ाते बाज नहीं आते ।
वे कौन लोग हैं
चाहते क्या हैं, जानते क्या हैं,
जो उठाते रहे सवाल तुम्हारे कुर्बानी पर
ताकि साबित कर सके तुम्हें आवारा बदमाश
फिर उतना बड़ा योगदान आदिवासियों का
कैसे रास आएगा भला उन्हें
हमारे किए करते हैं राज
और हमें आदमी तक नहीं मानते
उन्हें यह बात चुभती है, पेट में पथरी-सी
उबकाई आती है उन्हें
दरअसल वे डरते हैं तुमसे सिद्धो-कान्हू
तभी तो गहरी रात में उठा ले जाते हैं तुम्हारे तीर-धनुष ।
और किसका क्या कहना
अपने बुशी सोरेन को देखो
राजभवन के दरवाज़े पर डंका पीटते हुए
आर-पार की लड़ाई की करते हैं घोषणा
उन्हें आज तक नहीं मिली
तुम्हारे निहत्थे कर दिए जाने की ख़बर
और तो और
जिस रोज़ कायरों ने तोड़ी प्रतिमा तुम्हारी ।
कल तक जो तुम्हारे साथ
एकजुट हो लड़ रहे थे
वे आज अपनी-अपनी कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं
पर तुम तो कभी कुर्सी के लिए लड़े नहीं
और उस वक़्त कोई कुर्सी नहीं थी ।
देखो न
तुम्हारे नाम भुनाकर जो सत्ता पर काबिज़ हैं
लड़वा रहे हैं हमें आपस में ही अब
चाहे वो बुशी सोरेन हो या जुन मुंडा हो
टिफिन मराण्डी हो या नील सोरेन हो ।
भूल गए वे आज
जिस कुर्सी पर विराजमान हैं
वह तुम्हारी हथेलियों पर टिकी है ।
अँग्रेज़ों के अप्रत्यक्ष उत्तराधिकारी अभी भी
अपनी मानसिकता के साथ सक्रिय हैं सिद्धो-कान्हू
काश! तुम होते तो देखते
तुम्हारे नारे से हमारे ही विरूद्ध
और तुम्हारे विरूद्ध लड़ रहे हैं वे ।
कैसे लड़े इनसे
कैसे निपटे हम
हमारे तीर-धनुष सब इनके कब्ज़े में ही तो है ।
और फ़ादर टोप्नो की सुनो
वे तुम्हारे आंदोलन को बता रहे हैं
महाजनों और ज़मींदारों की लड़ाई
इन मगज़हीनों का हम क्या करें
इनसे कैसे शुरू करें लड़ाई
पर करना तो होगा कुछ न कुछ
देखो न पड़ा है नगाड़ा किनारे उदास
और भाई सब हड़िया पीकर कैसे दिमलाए हैं यहाँ-वहाँ
सिद्धो, मैं पीटती हूँ नगाड़ा
कि इसकी आवाज सुन
तुम आओगे कहीं न कहीं से
मैं पीटती हूँ नगाड़ा ।