आखिरी नदी / के० सच्चिदानंदन
आखिरी नदी में
पानी की बजाय खून बहता था
लावे की तरह खौलता हुआ
जिन आखिरी मेमनों ने उसका पानी पिया
वे बेआवाज़ मर गए
जो पक्षी उसके ऊपर से होकर उड़े
वे मूर्च्छित हो गए नदी में ही गिर गए
आंसू से भीगे चेहरे और रुकी हुई घड़ियाँ
खिड़कियों से गिरती ही रहीं
आखिरी नदी में एक माँ का चेहरा
डूब उतरा रहा था
एक लड़का नाव से उसे पार कर रहा था
उसके हाथ में एक जादुई घंटी थी
माँ से मिला आखिरी उपहार
उसकी स्मृति एक घर थी
हंसी से गूंजता घर
क्या तुम मुझसे डरते नहीं हो?
लड़के से पूछा आखिरी नदी ने
'नहीं', उसने कहा, 'आखिरी नदियों की संवेदना
रक्षा करती है मेरी
वे मेरी देखभाल करती रही हैं
मेरे पूर्वजन्मों में'
'तुम्हारे पिता ने मार डाला था उनको'
नदी बोली, उनका खून मुझमें प्रवाहित हो रहा है;
यह उनका क्रोध है जो मुझमें उबल रहा है
जवाब में लड़के ने घंटी बजा दी
बारिश होने लगी, प्यार ने नदी को शांत कर दिया
उसकी रक्तिमा नीले में बदल गई
मछलियाँ वापस आ गईं
नदी किनारे के पेड़ों में फूटने लगीं
आगामी कोपलें
घड़ियाँ फिर से चलने लगीं
यों, शुरू हुआ मनुष्यता का इतिहास
वह घंटी अब तलक गूँजती है
बच्चों की हँसी में