आग / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय
कविता अब नारा बना ली जाएगी
कविता अब झगड़ा बना ली जाएगी
कविता को नाव बना लूँगी
और पार करूँगी पदुमा
जिसके ऊपर पुल नहीं बनाया
कविता को इस्कूल बना लूँगी
और तैयार करूँगी ऐसे बच्चे
जो सवाल उठाएँगे
जो मना करेंगे
जो फ़रार होंगे
जो प्रेम करेंगे
कविता को बिस्तर बना लूँगी
और सोऊँगी दिनभर की मजूरी-मारपीट के बाद
कविता को दूध बनाऊँगी
बेटा तुझे पिलाऊँगी
कविता को रोटी बनाऊँगी
गाँव भर दुनिया भर को जिमाऊँगी
पापा सुन लो
कविता को खसम करूँगी मैं
और कविता को रख दूँगी
जहाँ अपनी बिटिया की लाश रखी थी
दिया नहीं कविता जलाऊँगी मैं
जिसने सोलह साल में देख ली
नौ मौत छह डिलेबरियाँ
उसके लिए
अँधेरा कविता है
मार कविता है झगड़ा कविता है
घाव कविता है घर कविता है
तुम लोगों को बहुत परनाम
कविता बनाना बतलाया
इस कविता से मिज़स्ट्रेट के दफ़्तर
आग लगाऊँगी मैं ।