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आग / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
चांद भी मुझसे जल रहा होगा
चांदनी सी पिघल रही होगी।
आग पानी में लग गई होगी,
तू नहाकर निकल रही होगी।
संग-ए-मरमर सरीं बदन होगा,
और निगाहें फिसल रही होंगी।