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आग जैसे ज्वलन्त प्रश्नों में / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
आग जैसे ज्वलंत प्रश्नों में
देश उलझा अनंत प्रश्नों में
सुर्ख टेसू सवाल करते हैं
घिर गया है वसंत प्रश्नों में
अपने-अपने महत्व को लेकर
कैसे उलझे हैं संत प्रश्नों में
उत्तरों को भी चोट आई है
हो गई है भिड़ंत प्रश्नों में
हम तो छोटे सवाल हैं, साहब!
हैं यहाँ भी महंत प्रश्नों में