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आगे कूप और पीछे खाई / संजय सिंह 'मस्त'
Kavita Kosh से
आगे कूप और पीछे खाई.
उसके पीछे पड़ा कसाई.
आग उगलता सूरज ऊपर,
नीचे तपती सड़क निहाई.
पेट मेंं बच्चा, पीठ पर बच्चा।
जच्चा बच्चा पर बन आई.
आँत मेंं ऐंठन, पीठ पर लाठी,
ख़ाली जेब और छुटी कमाई.
आँख मेंं आँसू, ख़ून हलक़ मेंं,
आये अब करने पहुनाई.
गुज़र गई बुधिया रस्ते में,
सस्ते मेंं हो गई विदाई.
शेख़ी बाज़ो अब तो चेतो,
कबतक ढोंग रचोगे भाई.
धनवानों तुम पर लानत है,
तुम क्या जानो पीर पराई.
कहते कुछ हो, करते कुछ हो,
जमी जीभ पर है क्या काई?