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आगे बढ़ना सीख रहा हूँ / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
सीख चुका हूँ तन को पढ़ना मन को पढ़ना सीख रहा हूँ।
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाकर आगे बढ़ना सीख रहा हूँ।
जैसा तन हो वैसा मन हो
ऐसा अक्सर कम होता है।
पर हरदम ऐसा ही होगा
यह तो मन का भ्रम होता है।
ऐसे भ्रम को काट-छाँट कर मूरत गढ़ना सीख रहा हूँ।
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाकर आगे बढ़ना सीख रहा हूँ।
औरों से लड़ना है आसाँ
ख़ुद से लड़ना मुश्किल होता।
जो ख़ुद से भी लड़ सकता हो
उसको ही सब हासिल होता।
औरों से तो बहुत लड़ा अब ख़ुद से लड़ना सीख रहा हूँ।
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाकर आगे बढ़ना सीख रहा हूँ।
सोच रहा हूँ चलते-चलते
कल से आज कहाँ पहुँचा हूँ।
कितनी छोटी-छोटी चोटी
चढ़कर आज यहाँ पहुँचा हूँ।
एवरेस्ट अब दीख रहा है उस पर चढ़ना सीख रहा हूँ।
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाकर आगे बढ़ना सीख रहा हूँ।