आग्रह / सीत मिश्रा
तुम्हारे आग्रह पर हर बार मिलती हूँ
इस उम्मीद के साथ कि तुम मिलोगे
हर बार निराश होती हूँ
तुमसे मुलाकात नहीं होती
तुम मेरी स्मृतियों में रचे-बसे हो
मेरे साथ मुझमें पलते-बढ़ते हो
लेकिन तुमसे मिलकर एहसासों की बयार नहीं बहती
तुम्हारी आँखें अब भेद नहीं पाती मुझे
फिर भी मिलती हूँ
तुम्हारे मिल जाने की आस में
बार-बार हर बार निराश होती हूँ
फिर साहस समेटती हूँ
तुममें तुम्हें ढूंढने की कोशिश करती
कभी-कभी झलक मिल जाती है तुम्हारी
बढ़ जाती है उम्मीदे तुम्हारे मिल जाने की
लेकिन फिर नाकामी
और तुम्हारा आश्वासन
कि कुछ भी नहीं बदला
मैं तुम्हें हमेशा से प्यार करता हूँ
फिर क्यों नहीं होता एहसास
क्यों तुम्हारा साथ मुझे परेशान करने लगता है
तुम्हारी हर छुअन एहसास दिलाती है
तुमने किसी और को यूँ ही छुआ होगा
जो मुझसे कहते हो किसी और से भी कहा होगा
यह सब सोचते हुए मेरा दिमाग भन्ना जाता है
मैं शिथिल पड़ जाती हूँ
फिर सोचती हूँ
अगर तुम्हें किसी और से प्यार है
तुम किसी और के साथ हो
तो भला मेरी क्या जरूरत
मुझसे क्यों मिलते हो
क्या तुम्हें भी मेरी तलाश है
क्या तुम भी मुझे ढूढ़ते हो
जैसा मैं सोचती हूँ तुम भी सोचते हो
तुम भी मेरे मिल जाने की आस लिए मुझसे मिलते हो।