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आज अपने आपसे / नईम
Kavita Kosh से
आज अपने आपसे हम डर गए।
आइना क्या सामने तुम धर गए!
कनपटी के बाल-
नक्शे झुर्रियों के-
एक लम्बी जिं़दगी कम कर गए।
झुक गए कंधे-
उमर के बोझ से,
मौत से पहले अचानक मर गए।
हम मचानों पर-
बँधे देखा किए,
पशु बनैले खड़ी फसलें चर गए।
साँप भीतर सिर-
उठाए हैं अभी,
पाहुने आए पलटकर घर गए।
रास्ता रोके खड़ीं-
वंध्या हवाएँ,
फूल-फूले चार दिन में झर गए।
आज अपने आपसे हम डर गए।