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आज उतरी हैं आँखों में परछाइयाँ / अमरेन्द्र
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आज उतरी हैं आँखों में परछाइयाँ
मेरी जाती रही हैं सब तनहाइयाँ।
इस अकेले में तुमने क्या मुझसे कहा
आज मेरा ही मन, मेरा मन न रहा
फूल लहरों पर जैसे बहे, मन बहा
ले रहा यादों में सौ-सौ अँगड़ाइयाँ।
मन सुवासित हुआ, साँसें शीतल हुई
रोम खिलखिल उठे, जैसे लाखों जुही
तन सुगन्धित हुआ इत्रा भींगी रुई
एक क्षण में हुईं कितनी गलबाँहियाँ।
आज देखे हैं पर्वत पर बादल घिरे
इक सरोवर में लहरों के सौ भाँवरे
अपने कन्धे पर आकाश को ही धरे
उठ गई हैं जमीं तक अगम खाइयाँ।