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आज की लड़की / पूनम गुजरानी

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मां
चिङिया कहकर
मत बुलाओ मुझे
मैं जानती हूँ
कल इस आंगन से
उङा दोगी
उस आंगन में मुझे
पर मैं
रहना चहाती हूँ
तुम्हारी आंखों में...
उकेरना चहाती हूँ
सपनों का इन्द्रधनुष
अनंत आकाश में।

मां
मुझे गाय कहकर
मत बुलाओ
मैं जानती हूँ
बांध देंगे पिता मुझे
कल किसी ओर खूंटे से
पर मैं बंधना चहाती हूँ
पिता की जिजीविषा ...
बनना चाहती हूँ
उनका अभिमान।

मां मुझे
पराया धन भी मत कहो
मैं किसी की जेब का
सिक्का नहीं हूँ
मैं तकदीर हूँ...
तलाश लूंगी
अपनी मंजिल
अपने नन्हे मगर
मजबूत कदमों से।

मां मैं
कठपुतली नहीं हूँ
जो नाचती रहे
धागों के सहारे...
नहीं हूँ शतरंज की गोटी
कि खेल जाए
कोई भी अपनी मर्जी से।

मां मैं
किरणों का काफिला हूँ
जिसके बिना
इस जगत में
जीवन का अस्तित्व नहीं।