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आज क्यों इस तरह से पास मेरे आई सुबह / जयप्रकाश त्रिपाठी

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बुझी-बुझी-सी रोशनी में क्यों नहाई सुबह।
आज क्यों इस तरह से पास मेरे आई सुबह।

आज तक किसी ने जो बात बताई थी नहीं,
पते की बात मुझे आज वो बताई सुबह।

मैंने पूछा कि मेरी याद क्या आती है उन्हें,
जवाब देते हुए फिर से लड़खड़ाई सुबह।

बोली, उनसे ही पूछ लेना इन सवालों को,
बीते लम्हों की तरह फिर से थरथराई सुबह।

बोली, छलकी हुई आँखों पर ऐतबार करो,
जरा हँसी, जरा रोई, फिर लहराई सुबह।

फ़लक पर उनकी उड़ानों के नज़ारे होंगे,
ऐसा कुछ सोच के धीरे से मुस्कराई सुबह।