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आज तुम्हारी याद बहुत ही आई मुझको / श्याम सुशील

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आज तुम्हारी याद बहुत ही आई मुझको
आज न जाने मन क्यों बहुत उदास रहा
थका-थका टूटा सा। लेकिन पासरहा
ध्यान तुम्हाराः देता रहा तसल्ली मुझको

कि मैं नहीं अकेला हूं इस महाभंवर में
और बहुत हैं साथ मेरे जो डूब रहे हैं
चट्टानों को तोड़ रहे हैं, टूट रहे हैं
लेकिन फिर भी डटे हुए हैं महासमर में

विपदाओं से कौन बचा है जीवन-रण में?

जो उतरा है उसे झेलना ही है, झेले
हंसकर सीना तान के या फिर रोकर ठेले
इससे अलग कहां है मुक्ति इस-उस क्षण में

तुमने कहा, लो देखो मैं अब भी हंसता हूं
इस जीवन पर, जिसकी चोटें सहकर भी मैं कब झुकता हूं।