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आज तो पूनो मचल पड़ी / गुलाब खंडेलवाल
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आज तो पूनो मचल पड़ी
अलकों में मुक्ताहल भरके
भाल बीच शशि बिंदी भर के
हँसी सिँगार सोलहों करके
नभ पर खड़ी-खड़ी
फूलों ने की हँसी ठिठोली
किसे रिझाने चकई बोली
वह न लाज से हिली न डोली
भू में गड़ी-गड़ी
चंदन-चर्चित अंग सुहावन
झिलमिल स्वर्णांचल मनभावन
चम्पक वर्ण, कपोल लुभावन
आँखें बड़ी-बड़ी
आज तो पूनो मचल पड़ी