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आज दिल बे-क़रार है मेरा / वली 'उज़लत'
Kavita Kosh से
आज दिल बे-क़रार है मेरा
किस के पहलू में यार है मेरा
क्यूँ न उश्शाक़ पर होऊँ मंसूर
जूँ सिपंद आह दार है मेरा
बे-क़रार उस का हूँगा हश्र में भी
यही उस से क़रार है मेरा
रंग-ए-ज़र्द और सरिश्क-ए-सुर्ख़ तो देख
क्या ख़िज़ाँ में बहार है मेरा
मेरे क़ातिल के कफ़ हिनाई नहीं
मुश्त-ए-ख़ूँ याद-गार है मेरा
खोल कर क़ब्र देख मश्क़-ए-जुनूँ
के कफ़न तार तार है मेरा
आते जाते मगर तू ठुकरावे
तेरे दर पर मज़ार है मेरा
आँख मूँदे है मेरी ख़ाक से भी
यहाँ तक उस को ग़ुबार है मेरा
जीते रहो क्यूँ हुए रक़ीब के हार
यही सीने में ख़ार है मेरा
तेरे कूचे के सग की पा-बोसी
बाइस-ए-इफ़्तिख़ार है मेरा
बंदा-ए-यार ‘उज़लत’-ए-मरहूम
नक़्श लौह-ए-मज़ार है मेरा