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आज नहीं तो कल आओगे / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
लाख रोकना चाहो ख़ुद को पर तुम रोक नहीं पाओगे।
आज नहीं तो कल आओगे।
अब तक रस्ता देख रहे हैं
कल भी रस्ता देखेंगे हम।
सूखा मौसम देख रहे हैं
मेघ बरसता देखेंगे हम।
मन की धरा हुई जो प्यासी बनकर तुम बादल आओगे।
आज नहीं तो कल आओगे।
कैसे कह दें याद तुम्हारी
करने को बेचैन न आये।
जो न दिखाये ख़्वाब तुम्हारे
ऐसी कोई रैन न आये।
जिस दिन होंगी सूनी आँखें बनकर तुम काजल आओगे।
आज नहीं तो कल आओगे।
अपने दिल के ज़ख्मों को हम
अभी छुपाये रह सकते हैं।
दर्द अभी है सीमाओं में
दर्द अभी हम सह सकते हैं।
धूप दर्द की तेज़ हुई तो बनकर तुम आँचल आओगे।
आज नहीं तो कल आओगे।