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आज निशाने जिन पर हैं / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
आज निशाने जिन पर हैं
वो सब ज़द से बाहर हैं
पिंजरों में महफ़ूज़ रहे
जितने पंछी बेपर हैं
फूलों की तक़दीरों में
क्यों काँटों के बिस्तर हैं
जीकर ये अहसास हुआ
मरने वाले बेहतर हैं
आँगन में है अँधियारा
चाँद-सितारे छत पर हैं !