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आज फिर जीने की तमन्ना है / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बंधन बांधे पायल
कोई न रोको दिल की उड़ान को
दिल वो चला ह ह हा हा हा हा
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा है
कल के अंधेरों से निकल के
देखा है आँखें मलके मलके
फूल ही फूल ज़िंदगी बहार है
तय कर लिया आ आ आ आ
आज फिर जीने...
मैं हूँ गुबार या तूफ़ां हूँ
कोई बताए मैं कहाँ हूँ
डर है सफ़र में कहीं खो न जाऊँ मैं
रस्ता नया आ आ आ आ
आज फिर जीने...