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आज रोती रात, साथी / हरिवंशराय बच्चन

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आज रोती रात, साथी!

घन तिमिर में मुख छिपाकर
है गिराती अश्रु झर-झर,
क्या लगी कोई हृदय में तारकों की बात, साथी!
आज रोती रात, साथी!

जब तड़ित क्रंदन श्रवणकर
काँपती है धरणि थर थर,
सोच, बादल के हृदय ने क्या सहे आघात, साथी!
आज रोती रात, साथी!

एक उर में आह ’उठती,
निखिल सृष्टि कराह उठती,
रात रोती, भीग उठता भूमि का पट गात, साथी!
आज रोती रात, साथी!