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आज से कल बेहतर होगा / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
आज से कल बेहतर होगा।
अपना कोई आखिर होगा।
धरती पर जन्मे और मरे
ऐसा घर और किधर होगा।
कांटों के पथ पर चल लेंगे
यदि आगे फूल नगर होगा।
तुमसी कोई नदिया होगी
हम-सा कोई सागर होगा।
दर्पण में कचनार खिलेंगे
आँखों में गुलमोहर होगा।
कह लेंगे जब एक ग़ज़ल हम
एक कमल भी अक्षर होगा।