भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजकल / समीर बरन नन्दी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे कोठार में, दन्त में विष भरे
हमले की तैयारी में पूँछ पर उठकर लहरा रहा है
पकड़ने जाओ तो डसने के लिए फुफकारता है ।

कुछ कहना चाहूँ तो, सुना है उसे सुनाई नहीं देता ।

नींद में उसकी फुसफुसाहट सुनता हूँ
देखता हूँ -- हरा-नीला वर्ण उसका चौड़ा-फन

हाथ जहाँ डालता हूँ --
काग़ज़ की तरह निकल आता है वो ।