आज़ाद स्त्रियाँ / अशोक तिवारी
आज़ाद स्त्रियाँ
स्त्रियो,
कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें
दिन-रात कितना भी काम करने की आज़ादी
यहाँ-वहाँ, हर जगह घर में घूमने की आज़ादी
रसोई में खाना पकाने और स्वादिष्ट पकवान बनाने की आज़ादी
चाय-नाश्ता व्यवस्थित करने की आज़ादी
स्वादानुसार या आदतानुसार जब-तब कुछ टूँगने की आज़ादी
सबको खिलाने के बाद ख़ुद खाने की आज़ादी
घर में साफ़-सफ़ाई के लिए हरदम तैयार रहने की आज़ादी
आज़ादी पानी भरने की,
कपड़े-लत्ते धोने, सुखाने, तह लगाने और इस्तरी करने की
आज़ादी घर को हरदम साफ़ करने की
हिसाब-किताब रखने की
कौन सा सामान हो गया है ख़त्म या होगा कब ख़त्म-लिस्ट बनाने की
नया सामान लाने का प्रस्ताव रखने की
आज़ादी बिजली, पानी, गैस, इंटेरनेट के बिल भुगतान समय से करने की
बच्चों को स्कूल छोड़ने और स्कूल से वापस लेकर आने की
पति के काम पर जाते वक़्त दरवाज़े से मुस्कराकर बाय-बाय करने की
छूट तो नहीं गया कुछ, इसे ध्यान रखने की
आज़ादी ख़ुद के अपने काम पर जाने की
काम से आकर घर सँभालने की
सभी की रुचियों और ज़रूरतों का ध्यान रखने की
किसको क्या पसंद है, क्या नापसंद - ये जानने की
आज़ादी मेहमानों का मुस्कराहट के साथ स्वागत करने की
हर हाल में मुस्कराते रहने की
आज़ादी कम सोते हुए लगातार काम करते रहने की
अपने से ज़्यादा दूसरों का ध्यान रखने की
हारी-बीमारी में काम करने, न करने का विकल्प चुनने की आज़ादी
लगाई गई बंदिशों पर अंदर ही अंदर आज़ादी तिलमिलाने की
आज़ादी अपने अंदर के भावों को तह दर तह लगाकर रखने की
पढ़ने की पढ़ाने की
ओढ़ने - पहनने की
बनने और सँवरने की
आज़ादी फ़क़त संस्कृति की दीवारों के परकोटे में
श्रृंगार करते हुए सुंदर दिखने की
घर के स्वामित्व का अहसास लेने की आज़ादी
और आज़ादी काम से थककर कुछ देर चुपचाप बैठने की
कितनी आज़ादी है!
और कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें ?
कमाल है!!
कहा फिर भी यही जाता है कि “स्त्रियां आज़ाद नहीं हैं!!!”
आपको क्या लगता है?