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आजुक कवि / कालीकान्त झा ‘बूच’

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आजुक कवि कोकिल नहीं कौआ!
 टाहि टाहि केर शोर मचावथि
कुकू कहब बिसरला बौआ...
रसक रसाल पराग परेमी
आइ पीजू केँ पीबि रहल छथि
उपवन तेजि आँगने आँगन
अइँठ कुठि पैर जीवि रहल छथि
लोलक लुत्ती सं सगरो ई
गामे गामक आगि लगउआ
काया कल्पक कलाकार ई
आइ सुधारक घाउ घिकोरथि
विसरि समाजक गुणा भाग केँ
अपनों लेल अशुद्धे जोरथि
युगक तराजू केर पासंग सं
सेर बन' चाहथि ई पौआ
कप्पक अछि अनुमान पलेटक
भाव चम्मचे संचारी अछि
बेचल सभ भूषण भाषण पर
बाँचल आब एक साड़ी अछि
कविता केँ ई कना कना क'
मंच मंच पर पेट पकौआ
बिनु ड़ोराक सूई सं शब्दक
नवकी कथरी सीबि रहल छथि
पत्नी केर वैधव्यो पर ई
चिरंजीवी भ' जीबि रहल छथि
काज कोन प्रेमक पुरहर सं
घाटि बिअहुति ब'र सगहुआ...