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आठवें आश्चर्य के बाद / शलभ श्रीराम सिंह
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मांस-पेशियों की
उधेड़-बुन में गुम
एक पूरी शताब्दी
किसी बन्द हो रहे पिरामिड के नीचे
अपनी नियति से बँधी
निःशब्द-निष्कम्प खडई है !
एक बीती हुई ज़िन्दगी
शताब्दी की सम्पूर्णता से भी बड़ी है !
यहाँ तक कि :
पिरामिड के पत्थर को
उलट कर
बाहर आ जाने वाला इंसान भी
उससे छोटा है !
(1966)