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आत्माएँ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
वो आत्मा जो मरी नहीं है अभी तक
महसूस कर सकती है लोगों के सुख-दुख
शामिल हो सकती है उनके सुख में
उतनी ही त्वरा से दुख में भी
प्रत्येक जगह किया जा सकता है महसूस उसे
कोई चिंगारी नहीं है उसमें
न ही बर्फ जैसी कोई ठंड
वो हवा भी नहीं है, न ही ठोस पत्थर
यह कोई प्रेम है जिसका वर्णन नहीं होता
हर बार अपना रूप बदल देती है
हर बार नया आभास और नया स्वभाव
किया जा सकता है इसका आदान-प्रदान
और यादों में रह जाती है जो मरने पर भी
अच्छी होती हैं वे आत्माएँ।