भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदत / विपिन कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
कभी भट्ठी में पिघलता लोहा भी
मनमानी पर उतर आता है
बन्दूक के बदले
हँसिया में ढल जाता है
मगर
खून पीने की आदत
बदल नहीं पाता है