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आदमी और कविता / जयप्रकाश कर्दम
Kavita Kosh से
क्यों नहीं चलते साथ-साथ
आदमी और कविता जहां कविता है वहां आदमी नहीं है
जहां आदमी है वहां नहीं है कविता
दोनों के बीच बनी रहती है दूरी
कब तक खड़े रहेंगे अवरोध बनकर
कविता और आदमी के बीच
भारी-भारी सिद्धांत, विचार और शब्द
बनाते रहेंगे शुष्क और संवेदनहीन आदमी को
कहीं तो कोई जगह हो
वादों, विवादों की इस दुनियां में
जहां एक आदमी कर सके संवाद
दूसरे आदमी से
समझें वे एक-दूसरे की संवेदना बाटें एक-दूसरे का दर्द
वर्ण, जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठ
केवल आदमी बनकर
मनुष्यता के आवेग और
संवेदना के संवेग से अलग और क्या है कविता
फिर क्यों नहीं जुड़ते परस्पर
कविता और आदमी
आदमी और कविता?