आदमी के लिए एक नाम / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह
जिसे कहते हैं मुल्क़
उसके लिए हम जान देते हैं —
मगर वो मुल्क़ हमारा नहीं होता
जिसे कहते हैं लोकतन्त्र
उसके लिए हम वोट देते हैं
मगर वो लोकतन्त्र हमारा नहीं होता
जिसे कहते हैं सरकार
उसके लिए हम टैक्स देते हैं
मगर वो सरकार हमारी नहीं होती
और जिसके लिए हम कुछ नहीं करते
वो आदमी हमारा होता है,
हमारे साथ मरता है, जीता है
हमसे झगड़ता भी है
तो भी बिल्कुल हमारा होता है
क्या जो हम सब करते हैं, ग़लत होता है ?
लगता है,
हमने अपना नाम ग़लत रख लिया है —
जिसे हम अपना मुल्क़ कहते हैं वो हमारा
मुल्क़ नहीं होता, जिस जाति और वंश पर
हमें अभिमान होता है वह जाति हमारी नहीं होती —
उस वंश में हम पैदा हुए नहीं रहते
हमें अपने लिए कोई और मुल्क़
खोजना चाहिए । अपने लिए कोई और
नाम तजबीज़ कर लेना चाहिए । और
ज़रूरत पड़े (पड़ती ही है) तो 'मैं' को निकालकर
'हम' को पोख्ता कर लेना चाहिए ।
'मैं' को 'हम' के लिए
मिटा दिया जा सकता है
कि 'मैं' के लिए 'हम' ज़रूरी — सबसे सही
नाम है ।