आदमी छै क़ैद में / जटाधर दुबे
सौंसे दुनिया केॅ
शस्त्र आरो तकनीक से
दहलावै वाला देश सब,
अदृश्य दानव के आतंक रो आगू
नतमस्तक छै।
वायुयान बन्द छै
रेलगाड़ी बन्द छै,
कार मोटर बन्द छै
कारखाना बन्द छै
गाँव-शहर अनजान होय गेलै,
डगर डगर वीरान होय गेलै।
आदमी घरोॅ में क़ैद होय गेलै
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
सबके एक्के पाठ पड़ैलखों
जाति धरम के भेद मिटैलखों।
साँस लैके फुरसत
जिनका नै रहै छेलै,
आय एक-एक साँस रो गति पर
नजर गड़लोॅ रहै छै।
आय आदमी छै क़ैद में,
पर प्रकृति छै आनन्द में
धरती से गगन ताँय,
प्रकृति रो एक-एक कणोॅ में,
नया जीवन रो मुस्कान उभरलोॅ छै।
हवा आरो अकाश
परदूषण के धुंध से मुक्त होय गेलै,
राती आबे तारा सनी
खूबे चमचमाय लागलै,
गंगा जमुना के पवित्र जलें
पुरानो गौरव फेरू पावी लेलकै।
चिड़ियाँ मनोॅ से डोॅर भी भागलै,
घर दुआरी, पेड़ अटारी
सब पर घुमि-घुमि गावै लागलै,
लागै छै सच्चै में
आदमी क़ैद से मुक्त होय रहलोॅ छै
नै रहतै आदमी
आबेॅ क़ैद में।