भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी है ठीकरा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

33
उदासियाँ क्यों?
दिल था दरपन
पड़ीं हज़ारों
चोटें अनवरत
तब टूटना पड़ा।
34
सुख-कामना
की थी सबके लिए ,
मैंने माँगे थे-
दु:ख सबके सारे
वे ही पास हमारे।
35
समय क्रूर
करता चूर-चूर
सारे सपने
आदमी है ठीकरा
कौड़ी के मोल बिके।