भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदिवासी / निवेदिता झा
Kavita Kosh से
मन तन
आव भाव
संस्कार व्यवहार
निश्छल प्रेम बहता है जिनकी शिराओं में
पसीने के टप-टप से
धरती के फटे बिबाईयों पर नमी का
असर गाहे बेगाहे
मनमौजी से
पठार के दरारों
खुखडी की लुका छिपी निहारते
उछल कर वहाँ तलछटी पर बिठाता मन
गालो पर गड्ढे श्यामवर्ण चेहरों को
सादगी और स्नेह के आवरण
से ढँक रखा है सृष्टि ने जिसे
प्रेम मिट्टी से भी होता है
ऐसे ही कुछ यकीं से जी लेते हैं आदिवासी।