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आधी-आधी रात केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
आधी-आधी रात केॅ निगोड़ी नींद भागै छै।
तोरे कहानी हे! रही-रही जागै छै।
हौ रंग केॅ रात कहाँ?
मधुर-मधुर बात कहाँ?
तुरत नींद आबै रहै
चिड़िया जगाबै रहै।
आबे तेऽ सौंसे दिन आगिन सन लागै छै।
आधी-आधी रात केॅ निगोड़ी नींद भागै छै।
आँखी में हरदम
तोंही विराजै छौ।
पूछला पर कुच्छो
बोलै नैं बाजै छौ
असकल्लोॅ हमरा सभ्भैॅ डराबै छै।
आधी-आधी रात केॅ निगोड़ी नींद भागै छै।
सिनेमा रंग घूमै छै।
बितलऽ कहानी।
ई बात केॅ बूझतै?
हे दिलरऽ रानी।
सपना हजार रंग सेना मतुर साजै छै।
आधी-आधी रात केॅ निगोड़ी नींद भागै छै।
23/03/16 होली फागुन पूर्णिमा दोपहर 12.50