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आने वाले कल के लिए / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
तोड़ सकते हो
तो तोड़ो शब्द
टूटकर गिरेगा शब्द
तभी गूंजेगा अर्थ
खनखनाहट के साथ।
गढ़ सकते हो
तो गढ़ो भाषा
गढ़ी हुई भाषा
ढो सकती है
टूटे हुए शब्द।
फिकर मत करो हमारी
हम पीछे भी रहे
तब भी
तुम्हारे शब्द और
तुम्हारी भाषा का पीछा करते हुए
अपनी मरी हुई संस्कृति को
शायद
ज़िन्दा कर पाएं।
1980