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आप आंखों में बस गए जब से/ नीरज गोस्वामी
Kavita Kosh से
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से
शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से
हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से ?